HAJJ KA TAZKIRAH HAR KISI SE NA KARNA
⭕AAJ KA SAWAL NO. 1497⭕
Hazrat mufti sahab, me is saal hajj kar ke aaya hun, to kya me mere milne walon se yeh keh sakta hun ke me hajj kar ke aaya ?
🔵JAWAB🔵
حامد و مصلیا و مسلما
Hajj ka tazkirah har ek shakhs se na karna chaiye, kyun ke tazkirah me khauf hai riyaa aur fakhr paida hone ka, riyaa aur fakhr ki niyyat se tazkirah karna to buraa hai hi, lekin muhaqqeqeen sufiya to baaz awqat aise tazkiron ko bhi manaa karte hain jo bazaahir taa’at malum hote hain, masalan wahaan ke mahaasin [achchhe manzar] aur fazail bayaan karna jisse wahaan jaane ka shauq aur ragbat paida ho.
Tazkirah sunne wale 3 kism ke log hain.
Ek who log hai jin par hajj farz hai, unke samne to targeebi mazameen bayaan karna jaiz balke mustahab hai,
Dusre woh log jin par hajj farz nahin hai, lekin unme hajj ki taaqat aur gunzaish hai, aur unko hajj karne jaana manaa bhi nahin hai, unke samne bhi bayaan karna jaiz hai,
📗MUALLIMUL HUJJAJ. AKHIRI SAFHAAT SE MAKHOOZ
و اللہ اعلم بالصواب
✒Mufti Imran Ismail Memon Sahab
🕌Ustad e Darul Uloom Rampura Surat Gujarat India
📆ISLAMI TAARIKH: 16 MUHARRAMUL HARAAM 1440
हज का तज़किराह हर किसी से न करना
⭕आज का सवाल नंबर १४९७⭕
हज़रत मुफ्ती साहब,
में इस साल हज कर के आया हूं,
तो क्या में मेरे मिलने वालों से ये केह सकता हूं इ में हज कर के आया ?
🔵जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
हज का तज़किराह हर एक शख्स से न करना चाहिए,
क्यूँ के तज़किराह में ख़ौफ़ है रिया और फ़ख्र पैदा होने का,
रिया और फ़ख्र की निय्यत से तज़किराह करना तो बुरा है हि, लेकिन मुहक़्क़ेक़ीन सूफ़िया तो बाज़ अवक़ात ऐसे तज़किरों को भी मना करते है जो बज़ाहिर ता'अत मालूम होते है, मस्लन वहाँ के महासिन [अच्छे मंज़र] और फ़ज़ाइल बयान करना जिस्से वहाँ जाने का शौक़ और रगबत पैदा हो।
तजकिरह सुनने वाले ३ किसम के लोग है।
२. दूसरे वो लोग जिन पर हज फ़र्ज़ नहीं है, लेकिन उनमे हज की ताक़त और गुंज़ाइश है, और उनको हज करने जाना मना भी नहीं है, उनके सामने भी बयान करना जाइज़ है,
३. तीसरे वो लोग जिन पर हज फ़र्ज़ नहीं है, या उनको हज के लिए जाना मना है, ये वो लोग है जिनकी माली ताक़त नहीं है, और मशक़्क़त पर सब्र और बर्दाश्त की भी कुदरत नहीं है, ऐसे लोगों के सामने ऐसे वाक़ियात और मज़ामीन बयान करना जिनसे उनको हज का शौक़ पैदा हो जाइज़ नहीं, क्यूँ के इससे उनको हज का शौक़ पैदा होगा और उनके पास सामान है ही नाहि, न ज़ाहिरि, न बातीनि, तो ख्वामखा परेशानी में मुब्तला होंगे, जिसे नाजाइज़ कामो में प ड जाने का अन्देशा है।
📗मुअलमूल हुज्जाज आख़री सफ़हात से माखूज़
و الله اعلم بالصواب
🌙🗓 इस्लामी तारिख : १६ मुहर्रमुल हराम १४४० हिजरी
✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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